पेशीय संकुचन का आणविक सिद्धान्त (Molecular of muscle contraction) यह सिद्धान्त डेविस (Davies) द्वारा 1963 में दिया गया। वस्तुतः यह सिद्धान्त अवसी सूत्र की परिकल्पना को सर्वाधिक मान्य किया गया है | पेशीय संकुचन में दो प्रमुख उत्प्रेरक कार्य करते हैं। एक है Mg आयन्स तथा दूसरा कैल्शियम। डेवीस के अनुसार हल्के मीरोमायोसिन AT Pase एन्जाइम की तरह कार्य करते हैं। यह अनुमानतः अनुप्रस्थ सेतु के आधार के समीप होते हैं तथा आयनों के समूहन के कारण इन पर ऋणात्मक आवेश होता है पर सेतु के दूरस्थ सिरे पर आयनित ATP की उपस्थिति होती है। आयनित ATP पर भी Mg आयानों के युग्मन के कारण ऋणात्मक आवेश होता है। अतः आधार और शीर्ष सिरों दोनों पर ऋणात्मक आवेश के कारण दोनों के बीच प्रतिकर्षण (Repulsion) कारण अनुप्रस्थ सेतु फैले रहते हैं। इस प्रकार ATP को सक्रिय क्षेत्र से दूर रखा जाता है। सरकोप्लाज्मिक नलिका से निकले कैल्शियम आयन, अनुप्रस्थ सेतु के दूरस्थ सिरे एवं समीप के एक्टिन सूत्र के बीच रासायनिक बंध बना देता है। इस कारण दूरस्थ सिरे पर ऋणात्मक आवेश समाप्त हो जाता है। जिससे सेतु के दोनों सिरों में प्रतिकर्षण भी समाप्त हो जाता है। सेतु के मायोसिन में हैलिक्स बनाने की है |
पेशीय संकुचन को प्रभावित करने वाले कारक
(Factors affecting muscular contraction) पेशीय संकुचन को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक निम्नांकित है
- उद्दीपन की अवधि तथा शक्ति (Duration and strength of stimulus)—पेशीय उद्दीपन के लिए प्रत्येक पेशी को एक न्यूनतम शक्ति तथा उद्दीपन को प्रभावशाली बनाने के लिए इसकी कुल निश्चित अवधि अनिवार्य होती है। इससे कम शक्ति तथा कम समय का उद्दीपन पेशी को उद्दीप्त नहीं कर सकेगा। इस कम से कम उद्दीपन को अवसीमा भी कहा जाता है।
- एक के बाद दूसरे उद्दीपन का प्रभाव (Effect of successive stimuli) यदि किसी उद्दीप्त पेशी को कुछ समय बाद पुनः उद्दीप्त किया जाय, तो इन उद्दीपनों के फलस्वरूप कायमोग्राफ पर दो सामान्य वक्र बनेंगे क्योंकि पेशी दो बार सिकुड़ेगी। पर यदि पेशी को विभ्रामा अवस्था में ही दुबारा उद्दीप्त किया जाता है तो भी दो वक्रों को ही दर्शाता है। परन्तु इसमें दूसरा वक्र पहले की अपेक्षा बड़ा बनता है क्योंकि इसे पहले उद्दीपन का लाभकारी प्रभाव मिल जाता है। इस प्रकार का वक्र सुपर पोजीशन वक्र (Super position curve) कहलाता है। अब यदि दूसरा उद्दीपन पेशी के श्रान्ति में आने के पूर्व दिया जाता है, तब जो वक्र बनता है वह अपेक्षाकृत काफी बड़ा बनता है। इस प्रकार यदि एक संकुचन को दूसरे के साथ शुरू किया जाये और पेशी संकुचित होकर आधक छोटी हो जाये तो पेशी पर जो सामूहिक प्रभाव पड़ता है उसे संकुलन प्रभाव (Summation effect) कहते हैं।
- लगातार अनेक उद्दीपनों का प्रभाव (Effect of Continuous Stimuli) यदि पेशी को लगातार कई उद्दीपन दिये जाते हैं तो उद्दीपनों के अनुसार निम्न प्रभाव होते हैं |
पेशी संकुचन
पेशी संकुचन के लिए आवश्यक इंजाएम एटीपी एज स्थित होता है । पेशी संकुचन के लिए प्रोटीन जरूरी होती है । जिसे हम मायोसिन प्रोटीन कहते हैं। यह प्रोटीन हमारे शरीर में जितनी भी रासायनिक ऊर्जा है रासायनिक ऊर्जा हमें भोजन करने से प्राप्त होती है यह रासायनिक ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करती है। इसी कारण यदि हम कभी कार्य करते हैं तो हमारी पेशी संकुचित हो जाते हैं । और यहां पर क्या होता है जो हमारे शरीर एटीपी एज होते हैं वह खर्च हो जाते हैं पेशी ऊतक पेशी ऊतक लंबी सकरी तथा अत्यधिक संकुचन शील पेशी कोशिकाओं का बना होता है। इसलिए उसको सिकुड़न सिकुड़ने वाला ऊतक भी कहा जाता है। यह ऊतक शरीर में मांस बनाता है। पेशी ऊतक की उत्पत्ति भ्रूणावस्था मे मीसोदर्म् से होती है जनन की तीन प्रमुख स्तर जने जने के स्तर भी कहते हैं ।
ऊतक के प्रकार
स्थिति संरचना एवं कार्य के आधार पर पेशी ऊतक तीन प्रकार के होते हैं ।
🌑 एच्छिक पेशीय
⚫ अनेच्छिक पेशीय
🌑 हृदय पेशियां
ऊतक के कार्य
पेशी ऊतक के कारण ही हाथ पैर आपस में हिलाए दोलय जा सकते हैं
मांसपेशियां शरीर को सुंदर और सुडौल बनाते हैं
यह शरीर के उन भागों को आकार प्रदान करता है जहां अस्तियां नहीं होती जैसे हृदय फेफड़े आमाशय जिगर गुर्दे आदि
रेखित पेशी
हमारी इच्छा के अनुसार चलने वाली पेशियां रेखित पेशियां कहलाते हैं । रेखित पेशी गुच्छओ के रूप में भाग में पाई जाती हैं। जिन भागो को इच्छा अनुसार आवश्यकता पड़ने पर गति करा सकते हैं। या उनकी गति को रोक सकते हैं इन पेशीयो पर गहरे तथा हल्के रंग की पट्टियां पाई जाती हैं। अर्थात रेखाएं पाए जाते हैं ये पेशीय अधिकतर हड्डियों से जुड़ी होती हैं । तथा शारीरिक गतियो में सहायक होती हैं।
अरेखित पेशीय
अरेखित पेशीय ऐसी पेशी है किया जिनका संचालन जीव की इच्छा के अनुसार नहीं होता उन्हे अरेखित पेशीय कहते है । उदाहरण जैसे आहार नाल पित्ताशय जनन वाहिनी मूत्र वाहिनी श्वास नली फेफड़े तथा रक्त वाहिनी की भित्तियो में पाई जाती हैं । इनमें रेखाएं नहीं पाई जाती हैं । जिसके कारण इन्हें चिकनी पेशी भी कहते हैं इनमें कोशिका में एक बड़ा केंद्र होता है । उसके द्रव को सार्कोप्लाज्म कहते हैं। कोशिका द्रव में पेशी तंतु होते हैं।
हृदय पेशी
यह केवल हृदय की मांसल दीवारों पर पाई जाती हैं। ये पेशीया शाखायुक्त होती हैं। हृदय पेशिया भी अरेखित पेशी होती हैं। तथा बिना रुके प्राणी के जन्म से मरने तक क्रियशील रहती हैं । पेशियों में केवल एक ही केन्द्रक होता है। इसमें रेखित तथा अरेखित पेशी के मिश्रित गुण पाए जाते हैं।