उत्परिवर्तन या म्यूटेशन (Mutation)
म्यूटेशन या उत्परिवर्तन शब्द का प्रथम प्रयोग नीदरलैण्ड के वैज्ञानिक ह्यूगो-डी-ब्रीज (Hugode-Vries) ने सन् 1900 में किया था। इस वैज्ञानिक ने ओइनोथिरा लैमार्कियाना (Oenothera lamarckiana) नामक पौधे की आनुवांशिक विभिन्नताओं का अध्ययन किया था। उसने बताया कि इन पौधों में होने वाले आकारिक (Morphological) परिवर्तन, गुणसूत्रों में होने वाले परिवर्तनों से सम्बन्धित हैं।
उत्परिवर्तन या म्यूटेशन की खोज का सही श्रेय टी.एच. मोरगन (T.H. Morgan, 1910) को जाता है। वे ड्रोसोफिला मेलेनोगेस्टर (Drosophila Melanogaster) पर प्रयोग कर रहे थे। उस प्रयोग में उनको F, पीढ़ी में एक सफेद आँख वाला (White Eyed) नर ड्रोसोफिला दिखाई दिया जब कि में उनके प्रयोग में नर तथा मादा दोनों ही लाल आँख वाले थे। मोरगन ने सफेद आँख वाले नर को म्यूटेन्ट कहा तथा स्पष्टीकरण दिया कि नेत्र के रंग (लाल) का जीन प्रभावी होता है, जो कि ‘X’ क्रोमोसोम पर पाया जाता है, परन्तु किसी कारण से ‘X’ क्रोमोसोम पर उपस्थित उस जीन में म्यूटेशन हुआ और आँख का रंग सफेद हो गया, क्योंकि नर में सिर्फ एक ‘X’ क्रोमोसोम पाया जाता है। इस प्रकार सबसे पहले मोरगन ने उत्परिवर्तन या म्यूटेशन के बारे में बताया।
म्यूटेशन के प्रकार (Types of Mutation)
म्यूटेशन या उत्परिवर्तन को कई आधारों पर वर्गीकृत किया गया है
- कोशिकाओं के आधार पर (On the basis of Cells)- जीवधारियों के शरीर की कोशिकाओं को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है। (अ) सोमेटिक कोशिकायें, (ब) जर्मिनल कोशिकायें। इन कोशिकाओं में होने वाले उत्परिवर्तन का अलग-अलग अध्ययन किया जाता है। (अ) सोमेटिक म्यूटेशन (Somatic Mutation)- शरीर की सोमेटिक कोशिकाओं अर्थात् उन कोशिकाओं जिनका प्रजनन से कोई सम्बन्ध नहीं है। होने वाले उत्परिवर्तन सोमोटिक म्यूटेशन कहलाते हैं। यह उत्परिवर्तन वंशागत नहीं होते हैं तथा केवल जीवधारी की सोमोटिक कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं तथा कोशिका अर्थात् जीव की मृत्यु बाद अप्रभावी या समाप्त हो जाते हैं। (ब) जर्मिनल म्यूटेशन (Germinal Mutation)-जब म्यूटेशन या उत्परिवर्तन जनन कोशिकाओं या जर्म कोशिकाओं में होते हैं तो उनको जर्मिनलम्यूटेशन कहते हैं। वे वंशागत होते हैं अर्थात् एक पीढ़ी से दूसरी में जाते हैं। जर्म कोशिकाओं से ‘स्पर्म’ तथा ‘ओवा’ अर्थात् शुक्राणु एवं अण्डाणु बनते हैं इसलिये उनको युग्मकीय या गैमीटिक म्यूटेशन (Gametic Mutation) कहते हैं।
प्यूटेशन के परिमाण एवं गुण के आधार पर (Mutation on the basis of Size and Quality)
परिमाण एवं गुण के आधार पर म्यूटेशन के दो प्रकार के होते हैं। (अ) प्वाइन्ट या जीन म्यूटेशन (ब) ग्राँस या मल्टीपिल म्यूटेशन
(अ) प्वाइन्ट या जीन म्यूटेशन-जब आनुवांशिक पदार्थ (डी.एन.ए.) में एक छोटे भाग में परिवर्तन होता है अर्थात् एक न्यूक्लियोटाइड या एक न्यूक्लियोटाइड जोड़ा में परिवर्तन होता है तो उसे प्वाइन्ट या जीन म्यूटेशन कहते हैं। यह निम्न प्रकार के हो सकते हैं :विलोपन
- डिलीशन या विलोपन
- इनसर्जन या एडीशन (जोड़ने से)
- सब्स्टीट्यूशन या प्रतिस्थापन
(ब) ग्राँस या मल्टीपिल म्यूटेशन-जब म्यूटेशन या उत्परिवर्तन में एक से अधिक न्यूक्लियोटाइड जोड़ा या सम्पूर्ण जीन में परिवर्तन होता है, तो उसे गाँस या मल्टीपिल म्यूटेशन कहते हैं।
म्यूटेशन का उत्पत्ति के आधार पर वर्गीकरण (Mutation on the basis of Origin)-
उत्पत्ति के आधार पर म्यूटेशन 2 प्रकार के होते हैं।
- स्पोन्टेनियस या आकस्मिक उत्परिवर्तन (Spontaneous Mutation)-यह परिवर्तन अचानक होते हैं तथा प्रकृति में स्वतः होते हैं। इनका कारण पता नहीं चल पाता है, परन्तु प्रयोगशाला , में यह परिवर्तन रेडियेशन तथा ताप के प्रभाव से किया जा सकता है। A
- प्रेरित म्यूटेशन (Induced Mutation)- इस प्रकार के उत्परिवर्तन कुछ रासायनिक पदार्थ x-किरण एवं गामा किरणों के द्वारा उत्पन्न किया जा सकता है। इसे कृत्रिम म्यूटेशन भी कहते हैं तथा म्यूटेजेनिक पदार्थों द्वारा उत्पन्न होता है।