नार्मलाइजिंग ( Normalizing) क्या है? विधि एवं उद्देश्य

नॉर्मलाइजिंग Normalizing


यह प्रक्रिया विभिन्न कारणों से जॉब में आई आन्तरिक संरचना की विकृति को दूर कर, जॉब के मौलिक गुणों की पुनर्स्थापना करने के लिए उपयोग में लाई जाती है। जॉब पर लगातार कोल्ड वर्किंग (cold working) करने से, वैल्डिंग करने से या फिर ऊष्मा उपचार प्रक्रिया करने से धातु की आन्तरिक संरचना में विकृति आती है, जिसके फलस्वरूप धातु भंगुर (brittle) हो जाती है। कास्ट किए गए जॉब भी असमान रूप से ठण्डा होने के कारण समान संरचना नहीं रखते। कहीं पर उनके कण बारीक हो जाते हैं तथा कहीं पर मोटे। इन सभी दोषों का निराकरण करने के लिए नॉर्मलाइजिंग प्रक्रिया अपनाई जाती है।

नॉर्मलाइजिंग के उद्देश्य Objectives of Normalizing

नॉर्मलाइजिंग करने के निम्न उद्देश्य हैं
• आन्तरिक संरचना में आई विकृति के कारण उत्पन्न हुई कठोरताको दूर करना।
• विभिन्न प्रक्रियाओं के प्रभाव को दूर कर मौलिक गुणों की
पुनर्स्थापना करना।
• यान्त्रिक गुणों का विकास करना।
• धातु की सामर्थ्य को बढ़ाना।

ढलाई किए गए जॉब के कणों को समान तथा महीन बनाना। कठोर किए गए पार्ट्स को पुन: मुलायम तथा मशीनेबिल बनाना।

नॉर्मलाइजिंग की विधि Process of Normalizing


इस प्रक्रिया में स्टील को नॉर्मलाइजिंग रेंज (normalizing range) तक गर्म किया जाता है। यह नॉर्मलाइजिंग तापमान स्टील में कार्बन की प्रतिशतता पर निर्भर करता है। यह तापमान स्टील के अपर क्रिटिकल प्वॉइण्ट (upper critical point) से भी 30°C से 40°C तक अधिक रहता है। इस तापमान पर जॉब को कुछ समय के लिए रखा जाता है। इस समय को होल्डिंग टाइम (holding time) कहते हैं।
होल्डिंग टाइम में पूरे जॉब का अन्दर तक का भाग एक ही तापमान पर आ जाता है। इस तापमान पर समस्त मार्टेनसाइट भी ऑस्टेनाइट (austenite) में बदल जाता है। अब यह रूम टेम्परेचर पर ठण्डा होने के कारण सम्पूर्ण ऑस्टेनाइट फैराइट (ferrite) तथा पिअरलाइट (pearlite) में बदल जाता है, जो कि बहुत मुलायम तथा डक्टाइल (soft and ductile) होता है। 0.83% से कम कार्बन वाला इस्पात भी सम्पूर्ण पिअरलाइट में बदल जाता है, जबकि 0.83% से अधिक कार्बनयुक्त इस्पात पिअरलाइट तथा सीमेन्टाइट में बदल जाता है |

Normalizing / सामान्यीकरण –

दोस्तों इस प्रक्रिया में भी धातुओं को उनके आकार में कुछ बदलाव करने के लिए उन्हें गर्म किया जाता है फिर उन को ठंडा किया जाता है यही प्रक्रिया नॉर्मलाइजिंग कहलाती है |

नॉर्मलाइजिंग की प्रक्रिया कैसे होती है ?

नॉर्मलाइजिंग की प्रक्रिया में जब किसी धातु अथवा स्टील के भौतिक और रासायनिक गुणों में परिवर्तन करना होता है तो धातु को 40 से 50 डिग्री सेंटीग्रेड अथवा धातु धातु के मेल्टिंग पॉइंट / उच्च गलनांक से अधिक तापमान पर गर्म करके एक निर्धारित समय को सेट करके गर्म की हुई धातु को उसी तापमान पर रोक कर बाहरी वातावरण अथवा वायु के संपर्क में ठंडा किया जाता है इसी प्रक्रिया को ही सामान्यीकरण अथवा नॉर्म लाइजिंग कहा जाता है | इस प्रक्रिया के द्वारा धातु की सतह द्वारा अनुभव की जा सकने वाली जंग की दर कम हो जाती है और साथ ही स्टील की ताकत और कठोरता बढ़ जाती |

नॉर्मलाइजिंग धातु के निम्न उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए किया जाता है –

  1. रेशों के साइज में सुधार करने के लिए इस प्रक्रिया को अपनाया जा सकता है |

2.​निम्न अथवा छोटे कार्बन इस्पात की सामर्थ को बढ़ाने के लिए नॉर्मलाइजिंग प्रक्रिया बहुत उचित होती है |

3.इस प्रक्रिया के द्वारा धातु की आंतरिक प्रति बलों को कम किया जा सकता है |

4.वेल्डन जोड़ों द्वारा बनी संरचनाओं के गुणों को सुधारने के लिए इस प्रक्रिया को अधिक से अधिक मात्रा में उपयोग में लाते हैं |

5.धातु के अथवा स्टील के यांत्रिक और विद्युत गुणों में बदलाव करने के लिए इस प्रक्रिया को अपनाया जाता है |

नार्मलाइजिंग क्या है

1. नॉर्मलाइजिंग  ऊष्मा उपचार का एक प्रक्रम होता है। जो बहुत अधिक उपयोगी होता है।

2. नॉर्मलाइजिंग और हार्डनिंग की क्रिया लगभग समान ही होती है। दोनों में एक सी ही क्रिया अपनाई जाती है।

3. नॉर्मलाइजिंग को मॉल्टिंग तापक्रम से 40 से 50 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक तापमान पर गर्म किया जाता है।

4. गर्म होना के बाद इसे कमरे के ताप पर ठंडा किया जाता है, इस प्रोसेस को ही नॉर्मलाइजिंग कहते हैं।

5. ऐसा करने से कई प्रकार के विद्युत और यांत्रिक गुणों को प्राप्त किया जा सकता है।

6. यांत्रिक प्रतिबलों को भी इस क्रिया के  द्वारा कम किया जाता है।

7. नॉर्मलाइजिंग  होने से रेशों की क्रिया में बहुत अगर सुधार आता है।

8. इससे निम्न कार्बन इस्पात की मशीनन क्रिया का प्रभाव बढ़ जाएगा।

9.मध्यम कार्बन इस्पात सामर्थ्य को बढ़ाना इसका अहम रूप है। इन सभी को मिलाकर ही नॉर्मलाइजिंग संपूर्ण होता है।

नॉर्मलाइजिंग करने के लिए उचित तापमान

नमस्कार दोस्तों आज हम आपको नॉर्मलाइजिंग के बारे में विस्तृत जानकारी देने जा रहे हैं। जिसमें हम आपको बता दें कि जो नॉर्मलाइजिंग है वह है फुल एनीलिंग के समान ही होता है लेकिन इसमें कुछ अंतर भी होते हैं। इसमें हम सबसे पहले 40 से 45 डिग्री सेल्सियस ताप तक गर्म करते हैं। उसके बाद गरम करने के बाद उसको हम ठंडा कर लेते है। नॉर्मलाइजेशन का हम एनीलिंग से थोड़ा सा तापमान ज्यादा रखते हैं। इसमें हम गर्म करने के बाद यदि हम इसे सीधी पानी के अंदर डाल दे तो धातु जल्दी से ठंडा हो जाएगी और वह हार्ड हो जाएगी। नॉर्मलाइजिंग  एक प्रकार की हीट ट्रीटमेंट प्रोसेस होती है। नॉर्मलाइजिंग का यूज़ हम किसी भी धातु को मुलायम करने के लिए करते हैं।

बिल्डिंग में नॉर्मलाइजिंग

नॉर्मलाइजिंग मे  हमारे जो पार्ट जैसे बिल्डिंग कास्टिंग कोल्ड वर्किग से बने हुए होते हैं उनमें यूज करते हैं। नॉर्मलाइजिंग मे दोस्तों आप सभी ने ये फील किया हुआ कि जब हम अपने  क्षमता से ज्यादा कार्य करते हैं तो ज्यादा कार्य करने से हमारे शरीर में जो मांसपेशियां होती हैं। उन मांसपेशियों में ज्यादा खिंचाव आ जाता है। तो दोस्तों यह प्रक्रिया धातुओं में भी होती है।

नॉर्मलाइजिंग से धातु की आंतरिक संरचना में कमी आना

जब हम धातु पर कास्टिंग ऑपरेशन या फिर कोल्ड वर्किंग ऑपरेशन करते हैं या फिर हम किसी धातु पर बिल्डिंग ऑपरेशन करते हैं तो इन ऑपरेशन की वजह से उस मेटल का जो आंतरिक संरचना होती है उस आंतरिक संरचना में कमी आ जाती है उसी के साथ खुश मेटल की आंतरिक संरचना  होती है वह क्षतिग्रस्त हो जाता है। और संरचना में क्षतिग्रस्त हो जाने से बॉडी में रेंडम हार्डनेस क्रिएट हो जाता है। यदि हमें किसी मेटल पर नॉर्मलाइजिंग करना है तो सबसे पहले हमें उसमें ही करना होगा। इसकी प्रक्रिया इस प्रकार से सबसे पहले हम हीट करते हैं उसके बाद वायु की उपस्थिति में उसे ठंडा किया जाता है और यही संपूर्ण प्रक्रिया नॉर्मलाइजिंग कहलाती है।

Leave a Comment